प्रस्तावना: एक ऐतिहासिक जोड़ी का जादू
1998 में रिलीज़ हुई फ़िल्म बड़े मियां छोटे मियां बॉलीवुड की उन गिनी-चुनी फ़िल्मों में से एक है, जो आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है। इस फ़िल्म ने न केवल बॉक्स ऑफ़िस पर धमाल मचाया, बल्कि दो दिग्गज अभिनेताओं—अमिताभ बच्चन और गोविंदा—की अनोखी जोड़ी को भी अमर कर दिया। डेविड धवन के निर्देशन में बनी यह एक्शन-कॉमेडी फ़िल्म उस दौर की सबसे बड़ी हिट्स में से एक थी, जिसने 12 करोड़ के बजट में बनकर लगभग 35 करोड़ रुपये की कमाई की थी। यह फ़िल्म न केवल अपने गानों, डायलॉग्स और हास्य के लिए जानी जाती है, बल्कि इसके पीछे की कहानियाँ, प्रोडक्शन की चुनौतियाँ, और छिपे हुए तथ्य भी इसे और भी रोचक बनाते हैं। इस लेख में हम बड़े मियां छोटे मियां के निर्माण, इसके पीछे की अनकही कहानियों, और इसके सांस्कृतिक प्रभाव को विस्तार से जानेंगे।
फ़िल्म का आधार और प्रेरणा
कहानी की जड़ें: शेक्सपियर से प्रेरणा
बड़े मियां छोटे मियां की कहानी दो ऐसे किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो दिखने में एक जैसे हैं लेकिन स्वभाव में बिल्कुल अलग। अमिताभ बच्चन और गोविंदा ने इस फ़िल्म में डबल रोल निभाए—एक पुलिसवाले और एक चोर के। यह कॉन्सेप्ट विलियम शेक्सपियर की क्लासिक रचना कॉमेडी ऑफ़ एरर्स से प्रेरित माना जाता है, जिसमें एक जैसे दिखने वाले किरदारों की गलतफहमियों से हास्य उत्पन्न होता है।
हालांकि, फ़िल्म की स्क्रिप्ट को भारतीय दर्शकों के स्वाद के अनुसार ढाला गया। डेविड धवन ने अपनी खास शैली में इस कहानी को मसालेदार बनाया, जिसमें एक्शन, कॉमेडी, और रोमांस का तड़का लगाया गया। फ़िल्म की कहानी में गोविंदा और अमिताभ के किरदारों की अदला-बदली और उससे उत्पन्न होने वाली गलतफहमियाँ दर्शकों को हँसाने में कामयाब रहीं।
पाकिस्तानी नाटक से कॉपी का आरोप
फ़िल्म के कुछ दृश्यों पर कॉपी के आरोप भी लगे। बताया जाता है कि एक सीन, जिसमें शराफत अली को पुलिस स्टेशन से छुड़ाने की कोशिश की जाती है, पाकिस्तानी कॉमेडियन उमर शरीफ के नाटक हम सा हो तो सामने आए से प्रेरित था। हालांकि, इस तरह के आरोप बॉलीवुड में उस दौर में आम थे, और डेविड धवन ने इसे अपनी शैली में पेश कर दर्शकों का मनोरंजन किया।
प्रोडक्शन की कहानी
वाशु भगनानी का दांव
फ़िल्म के निर्माता वाशु भगनानी ने इस प्रोजेक्ट में बड़ा जोखिम लिया। 1998 में अमिताभ बच्चन का करियर उतार-चढ़ाव के दौर से गुज़र रहा था। उनकी पिछली फ़िल्में जैसे मृत्युदाता और मेजर साब बॉक्स ऑफ़िस पर असफल रही थीं। दूसरी ओर, गोविंदा उस समय अपने करियर के चरम पर थे और डेविड धवन के साथ उनकी जोड़ी सुपरहिट थी। वाशु भगनानी ने इन दोनों सितारों को एक साथ लाने का फैसला किया, जो एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ।
वाशु ने एक साक्षात्कार में बताया कि अमिताभ और गोविंदा की जोड़ी को एक साथ लाना आसान नहीं था। अमिताभ के साथ काम करने की उनकी प्रतिष्ठा और गोविंदा की लेट-लतीफी की आदतें प्रोडक्शन के लिए चुनौती थीं। फिर भी, वाशु ने इस जोड़ी पर भरोसा जताया और फ़िल्म को भव्य बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
बजट और बॉक्स ऑफ़िस
फ़िल्म का बजट उस समय के हिसाब से 12 करोड़ रुपये था, जो एक बड़ा निवेश माना जाता था। इस बजट का बड़ा हिस्सा सितारों की फीस, भव्य सेट्स, और गानों की शूटिंग पर खर्च हुआ। फ़िल्म ने रिलीज़ के बाद भारत में 19 करोड़ रुपये और विश्व भर में 35.21 करोड़ रुपये की कमाई की। यह उस साल की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म थी, जिसे केवल शाहरुख खान की कुछ कुछ होता है ने पीछे छोड़ा।
इस सफलता ने न केवल वाशु भगनानी की प्रोडक्शन कंपनी पूजा एंटरटेनमेंट को मज़बूत किया, बल्कि अमिताभ बच्चन के करियर को भी नई उड़ान दी। यह फ़िल्म उनके लिए एक ज़रूरी कमबैक साबित हुई, क्योंकि इससे पहले वह पाँच साल तक किसी सुपरहिट फ़िल्म का हिस्सा नहीं रहे थे।
अमिताभ और गोविंदा: एक अनोखी जोड़ी
पहली मुलाकात और केमिस्ट्री
अमिताभ बच्चन और गोविंदा इससे पहले 1991 में हम फ़िल्म में साथ काम कर चुके थे, जो बॉक्स ऑफ़िस पर हिट रही थी। लेकिन बड़े मियां छोटे मियां में उनकी जोड़ी ने एक अलग ही जादू बिखेरा। अमिताभ ने एक साक्षात्कार में बताया, “गोविंदा के साथ काम करना बेहद मज़ेदार था। उस समय हम दोनों जोश से भरे थे, और हमारी केमिस्ट्री ने दर्शकों को खूब हँसाया।”
हालांकि, दोनों की कार्यशैली में ज़मीन-आसमान का अंतर था। अमिताभ बच्चन समय के पाबंद और अनुशासित थे, जबकि गोविंदा की लेट-लतीफी के किस्से बॉलीवुड में मशहूर थे। एक्टर शहज़ाद खान ने एक साक्षात्कार में खुलासा किया कि बड़े मियां छोटे मियां के सेट पर अमिताभ सुबह 9 बजे पहुँच जाते थे, लेकिन गोविंदा अक्सर शाम 4 बजे तक सेट पर आते थे। डेविड धवन इस स्थिति को सँभालने के लिए अमिताभ को अन्य कामों में व्यस्त रखते थे।
गोविंदा की लेट-लतीफी और डेविड धवन का जादू
गोविंदा की देरी के बावजूद, डेविड धवन ने सेट पर माहौल को हल्का-फुल्का रखा। शहज़ाद खान ने बताया कि डेविड धवन की स्मार्टनेस के कारण सेट पर कोई तनाव नहीं होता था। वह अमिताभ को स्क्रिप्ट पढ़ने या अन्य सीन की तैयारी में व्यस्त रखते, ताकि गोविंदा के देर से आने का असर प्रोडक्शन पर न पड़े।
गोविंदा ने भी अपनी लेट-लतीफी को स्वीकार किया था। आप की अदालत शो में उन्होंने कहा, “मैंने अमिताभ जी से पहले ही माफी माँग ली थी कि मैं समय पर नहीं पहुँच पाता। उनके साथ काम करना मेरे लिए सम्मान की बात थी, लेकिन मेरी कुछ आदतें थीं, जिनके कारण लोग शोर मचाते थे।”
[](https://xoomxing.com/ahbitabh-bacchan-or-govinda-ki-superhit-filme/)गोविंदा का स्टारडम और अमिताभ पर भारी पड़ना
वाशु भगनानी का खुलासा
फ़िल्म की रिलीज़ के बाद ऐसी खबरें आईं कि गोविंदा ने अमिताभ बच्चन पर भारी पड़कर सारा लाइमलाइट ले लिया। निर्माता वाशु भगनानी ने कनेक्ट एफ़एम कनाडा को दिए एक साक्षात्कार में इस पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा, “गोविंदा उस समय अपने करियर के पीक पर थे। उनकी कॉमिक टाइमिंग और डांस ने दर्शकों को दीवाना बना दिया था। लेकिन सच यह है कि अगर अमिताभ जी फ़िल्म में नहीं होते, तो गोविंदा को इतनी तारीफ़ें नहीं मिलतीं।”
वाशु ने यह भी बताया कि अमिताभ ने एक बार उनसे चुपके से कहा था, “यार, मैदान अगर खोल दो, तो हम दोनों देखते हैं क्या होता है।” इस बयान से साफ़ था कि अमिताभ अपनी प्रतिभा को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन उन्होंने गोविंदा को पूरा मौका दिया ताकि फ़िल्म की जोड़ी चमक सके।
प्रमोशन में गोविंदा का दबदबा
एक X पोस्ट में दावा किया गया कि फ़िल्म के प्रमोशन में गोविंदा को ज़्यादा तरजीह दी गई थी। पोस्ट में लिखा था, “90 के दशक में जब अमिताभ का करियर ढलान पर था, तब उन्हें एक हिट के लिए गोविंदा के चेहरे की ज़रूरत पड़ी थी। बड़े मियां छोटे मियां के ज़्यादातर दृश्यों में दोनों साथ दिखे, लेकिन प्रमोशन में गोविंदा को आगे रखा गया।”
हालांकि, यह दावा पूरी तरह सही नहीं हो सकता, क्योंकि अमिताभ बच्चन का स्टारडम उस समय भी कम नहीं था। फिर भी, गोविंदा की लोकप्रियता और डेविड धवन के साथ उनकी सुपरहिट जोड़ी ने फ़िल्म के मार्केटिंग में अहम भूमिका निभाई।
फ़िल्म में अन्य कलाकार और उनके योगदान
रवीना टंडन और राम्या कृष्णन
फ़िल्म में रवीना टंडन ने गोविंदा की प्रेमिका और अमिताभ की बहन का किरदार निभाया, जबकि राम्या कृष्णन ने अमिताभ के अपोज़िट मुख्य भूमिका निभाई। राम्या, जो बाद में बाहुबली में शिवगामी के किरदार से मशहूर हुईं, ने इस फ़िल्म में अपनी खूबसूरती और अभिनय से दर्शकों का ध्यान खींचा।
रवीना टंडन उस समय गोविंदा के साथ कई हिट फ़िल्मों में काम कर चुकी थीं, और उनकी केमिस्ट्री इस फ़िल्म में भी शानदार थी। उनके डायलॉग्स और हास्य दृश्यों ने फ़िल्म को और मज़ेदार बनाया।
सहायक कलाकारों का जादू
फ़िल्म में अनुपम खेर, परेश रावल, सतीश कौशिक, कादर खान, और दिव्या दत्ता जैसे सहायक कलाकारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुपम खेर का पुलिस कमिश्नर का किरदार और कादर खान का वेटर का रोल आज भी दर्शकों को हँसाने में कामयाब होता है। इन सभी कलाकारों ने फ़िल्म की कॉमेडी को और धारदार बनाया।
माधुरी दीक्षित का कैमियो
फ़िल्म में माधुरी दीक्षित का एक छोटा सा कैमियो था, जो अमिताभ बच्चन के साथ उनका पहला और आखिरी ऑन-स्क्रीन सहयोग था। यह दृश्य कुछ सेकंड का ही था, लेकिन दर्शकों के लिए यह एक खास पल था।
गाने और संगीत: फ़िल्म की आत्मा
टाइटल ट्रैक और अन्य हिट गाने
फ़िल्म का संगीत विमलेश लाहिड़ी ने दिया था, और इसके गाने आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। टाइटल ट्रैक “बड़े मियां छोटे मियां” और “किसी डिस्को में जाएँ” उस समय के चार्टबस्टर्स थे। “अस्सी चुटकी नब्बे ताल” गाना भी छोटे शहरों में खूब बजा।
गोविंदा के डांस मूव्स और अमिताभ की एनर्जी ने इन गानों को और यादगार बना दिया। खासकर टाइटल ट्रैक में दोनों की जुगलबंदी ने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया।
गानों की शूटिंग
गानों की शूटिंग के लिए भव्य सेट्स बनाए गए थे। “किसी डिस्को में जाएँ” की शूटिंग एक डिस्को-थीम वाले सेट पर हुई, जिसमें गोविंदा और अमिताभ ने अपने डांस से आग लगा दी। इन गानों की कोरियोग्राफी उस समय के मशहूर कोरियोग्राफर चिन्नी प्रकाश ने की थी।
गोविंदा की अनिच्छा और अमिताभ की भूमिका
गोविंदा का फिल्म न करने का फैसला
एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि गोविंदा शुरू में इस फ़िल्म को करने के लिए तैयार नहीं थे। द कपिल शर्मा शो में गोविंदा ने बताया, “मैं उस समय कई फ़िल्में कर रहा था और मेरे परिवार में कई दुखद घटनाएँ हो रही थीं। मैं इस फ़िल्म को करने के मूड में नहीं था। लेकिन अमिताभ जी ने मुझे मनाया।”
गोविंदा ने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने इस फ़िल्म के लिए कोई रिहर्सल नहीं की थी। “मैं सेट पर जाता था, स्क्रिप्ट पढ़ता था, और सीन शूट कर लेता था। मैं सुबह 4 बजे सेट पर पहुँच जाता था, ताकि अमिताभ जी को मेरी वजह से इंतज़ार न करना पड़े।” यह बयान गोविंदा की लेट-लतीफी की छवि को चुनौती देता है।
अमिताभ का प्रोत्साहन
अमिताभ बच्चन ने गोविंदा को न केवल इस फ़िल्म के लिए प्रेरित किया, बल्कि उनके साथ सेट पर एक दोस्ताना माहौल भी बनाए रखा। गोविंदा ने बताया कि अमिताभ की मौजूदगी ने उन्हें आत्मविश्वास दिया। “वह एक लीजेंड हैं। उनके साथ खड़े होने पर मैं थोड़ा नर्वस हो जाता था, लेकिन उन्होंने मुझे सहज किया।”
फ़िल्म के पीछे की चुनौतियाँ
गोविंदा को मिली धमकी
फ़िल्म की शूटिंग से पहले गोविंदा को कथित तौर पर धमकी दी गई थी कि वह अमिताभ के साथ काम न करें। कुछ लोगों का मानना था कि अगर फ़िल्म हिट हुई, तो सारा श्रेय अमिताभ को मिलेगा। लेकिन गोविंदा ने इन बातों को नज़रअंदाज़ किया और फ़िल्म में काम किया।
यह घटना उस समय के बॉलीवुड की प्रतिस्पर्धा को दर्शाती है, जहाँ सितारों के बीच असुरक्षा और लॉबिंग आम थी। गोविंदा की हिम्मत और आत्मविश्वास ने उन्हें इस फ़िल्म का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया।
अमिताभ का सात घंटे का इंतज़ार
जैसा कि पहले बताया गया, गोविंदा की देरी के कारण अमिताभ को कई बार सेट पर लंबा इंतज़ार करना पड़ता था। लेकिन अमिताभ ने कभी इस पर नाराज़गी नहीं दिखाई। डेविड धवन की चतुराई और अमिताभ की प्रोफेशनलिज़्म ने प्रोडक्शन को सुचारू रखा।
सांस्कृतिक प्रभाव और विरासत
कॉमेडी की नई परिभाषा
बड़े मियां छोटे मियां ने 90 के दशक की बॉलीवुड कॉमेडी को एक नया आयाम दिया। डेविड धवन की यह फ़िल्म उस दौर की मास एंटरटेनर थी, जो हर वर्ग के दर्शकों को आकर्षित करती थी। फ़िल्म के डायलॉग्स जैसे “बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानअल्लाह!” आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं।
इस फ़िल्म ने गोविंदा को कॉमेडी किंग के रूप में स्थापित किया, जबकि अमिताभ बच्चन ने दिखाया कि वह किसी भी जॉनर में फिट हो सकते हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग ने दर्शकों को हैरान कर दिया, क्योंकि वह उस समय तक गंभीर और एक्शन रोल्स के लिए ज़्यादा जाने जाते थे।
नए ज़माने में रीमेक की कोशिश
2024 में वाशु भगनानी ने उसी टाइटल के साथ एक नई फ़िल्म बनाई, जिसमें अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ मुख्य भूमिका में थे। हालांकि, यह फ़िल्म 1998 की मूल फ़िल्म का रीमेक नहीं थी, और इसने बॉक्स ऑफ़िस पर निराशाजनक प्रदर्शन किया।
इस असफलता ने यह साबित किया कि अमिताभ और गोविंदा की जोड़ी का जादू दोबारा बनाना आसान नहीं है। मूल फ़िल्म की सादगी, हास्य, और केमिस्ट्री आज भी बेजोड़ है।
छिपे हुए तथ्य और रोचक किस्से
अमिताभ का कमबैक
यह फ़िल्म अमिताभ बच्चन के लिए एक महत्वपूर्ण कमबैक थी। 1992 की खुदा गवाह के बाद उनकी कोई बड़ी हिट नहीं थी। बड़े मियां छोटे मियां ने उनके करियर को नई दिशा दी और उन्हें एक बार फिर बॉक्स ऑफ़िस के बादशाह के रूप में स्थापित किया।
गोविंदा का डबल रोल का जादू
गोविंदा ने अपने करियर में कई डबल रोल वाली फ़िल्में कीं, लेकिन बड़े मियां छोटे मियां में उनका प्रदर्शन बेजोड़ था। उनके चोर और पुलिसवाले के किरदारों ने दर्शकों को हँसाने के साथ-साथ उनकी वर्सेटिलिटी को भी दिखाया।
फ़िल्म का क्लैश
फ़िल्म का बॉक्स ऑफ़िस पर शाहरुख खान की कुछ कुछ होता है से क्लैश हुआ था। दोनों फ़िल्में एक ही समय पर रिलीज़ हुईं, और कुछ कुछ होता है ने ज़्यादा कमाई की। लेकिन बड़े मियां छोटे मियां ने भी अपनी जगह बनाई और एक कल्ट क्लासिक बन गई।
निष्कर्ष: एक अमर फ़िल्म
बड़े मियां छोटे मियां केवल एक फ़िल्म नहीं, बल्कि 90 के दशक की बॉलीवुड संस्कृति का एक हिस्सा है। इस फ़िल्म ने अमिताभ बच्चन और गोविंदा की जोड़ी को अमर कर दिया, और इसके गाने, डायलॉग्स, और हास्य आज भी उतने ही ताज़ा हैं। इसके पीछे की कहानियाँ—चाहे वह गोविंदा की लेट-लतीफी हो, अमिताभ का प्रोफेशनलिज़्म, या डेविड धवन की चतुराई—इस फ़िल्म को और भी खास बनाती हैं।
यह फ़िल्म हमें उस दौर की याद दिलाती है, जब बॉलीवुड में मसाला फ़िल्में राज करती थीं, और सितारे अपनी प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीत लेते थे। बड़े मियां छोटे मियां न केवल एक मनोरंजक फ़िल्म है, बल्कि बॉलीवुड के सुनहरे इतिहास का एक चमकता सितारा भी है।
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