कान्स फिल्म फेस्टिवल, विश्व सिनेमा का एक प्रतिष्ठित मंच, न केवल अपनी फिल्मों के लिए बल्कि हाल के वर्षों में एक अनोखी परंपरा के लिए भी चर्चा में रहा है: लंबे समय तक खड़े होकर तालियाँ बजाने की प्रथा। 78वें कान्स फिल्म फेस्टिवल (2025) में यह परंपरा और भी गहरी होती दिख रही है, लेकिन इसके पीछे की सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक गतिशीलता ने इसे एक जटिल और विवादास्पद विषय बना दिया है। यह लेख इस परंपरा का गहराई से विश्लेषण करता है, इसके सामाजिक निहितार्थों, इसकी आलोचनाओं, और इसके पीछे छिपे सत्य को उजागर करता है। यह लेख तथ्यों की पुष्टि के साथ-साथ हाल की घटनाओं और समाचारों को शामिल करता है, ताकि इस प्रथा के विभिन्न आयामों को समझा जा सके।
कान्स में खड़े होकर तालियाँ बजाने की परंपरा: एक अवलोकन
कान्स फिल्म फेस्टिवल में खड़े होकर तालियाँ बजाना कोई नई बात नहीं है। यह एक ऐसी परंपरा है जो दशकों से चली आ रही है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी तीव्रता और अवधि ने इसे एक अलग पहचान दी है। 2025 के कान्स फेस्टिवल में, कई फिल्मों को असाधारण रूप से लंबी तालियों का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, जोआकिम ट्रायर की फिल्म सेंटिमेंटल वैल्यू को 19 मिनट की तालियाँ मिलीं, जो इस साल की सबसे लंबी अवधि थी। वहीं, नीरज घायवान की भारतीय फिल्म होमबाउंड को 9 मिनट की तालियाँ प्राप्त हुईं, और रिचर्ड लिंकलेटर की नूवेल वाग को 10-11 मिनट की तालियाँ मिलीं।
ये लंबी तालियाँ केवल उत्साह का प्रतीक नहीं हैं; इनका एक सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी है। यह प्रथा न केवल दर्शकों की भावनाओं को व्यक्त करती है, बल्कि यह एक सामूहिक प्रदर्शन बन गई है, जिसे कान्स के आयोजकों और मीडिया ने बढ़ावा दिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह उत्सव सिनेमा की जीवंतता को दर्शाता है, या यह एक गहरे संकट का लक्षण है?
इतिहास और विकास
कान्स में खड़े होकर तालियाँ बजाने की परंपरा का इतिहास पुराना है। 1984 में सर्जियो लियोन की वन्स अपॉन ए टाइम इन अमेरिका को 15 मिनट की तालियाँ मिली थीं, जो उस समय असाधारण थी। 2006 में गिलर्मो डेल टोरो की पैन'स लैब्रिंथ को 22 मिनट की तालियाँ मिलीं, जो आज तक का रिकॉर्ड है। लेकिन पहले यह प्रथा असाधारण थी और केवल उन फिल्मों के लिए थी जो वास्तव में दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं। हाल के वर्षों में, यह एक मानक बन गया है, जहाँ लगभग हर फिल्म को, चाहे उसकी गुणवत्ता कैसी भी हो, लंबी तालियाँ मिलती हैं।
2024 और 2025 के कान्स फेस्टिवल में यह देखा गया कि अधिकांश प्रतियोगिता फिल्मों को 5 से 19 मिनट तक की तालियाँ मिलीं। उदाहरण के लिए, मिशन: इम्पॉसिबल – द फाइनल रेकनिंग को 7.5 मिनट, द क्रोनोलॉजी ऑफ वॉटर को 6 मिनट, और एडिंगटन को 5 मिनट की तालियाँ मिलीं। यह प्रथा अब इतनी सामान्य हो गई है कि इसे एक सामाजिक अनुष्ठान के रूप में देखा जाने लगा है।
कान्स की तालियों का सामाजिक विज्ञान
लंबे समय तक खड़े होकर तालियाँ बजाने की प्रथा को समझने के लिए हमें सामाजिक विज्ञान के दृष्टिकोण से इसका विश्लेषण करना होगा। यह केवल एक उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि एक सामूहिक व्यवहार है जो कई कारकों से प्रभावित होता है।
संस्थागत प्रोत्साहन
कान्स फेस्टिवल के आयोजक इस प्रथा को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करते हैं। फेस्टिवल के प्रमुख थिएरी फ्रेमॉक्स ने 2022 में कहा था कि दर्शकों की भागीदारी स्क्रीनिंग को एक उत्सव बनाती है। उन्होंने बताया कि वह स्क्रीनिंग के दौरान रोशनी, क्रेडिट्स, और अन्य तत्वों का प्रबंधन इस तरह करते हैं कि दर्शकों का उत्साह बढ़े। इसके अलावा, कान्स की इन-हाउस प्रोडक्शन टीम प्रत्येक प्रीमियर के अंत में निर्देशक और अभिनेताओं के चेहरों को बड़े स्क्रीन पर प्रोजेक्ट करती है, जिससे दर्शक और अधिक उत्साहित होकर तालियाँ बजाते हैं।
यह एक तरह का सामाजिक दबाव बनाता है, जहाँ दर्शक न केवल अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, बल्कि एक सामूहिक प्रदर्शन का हिस्सा बनते हैं। यह सामाजिक अनुरूपता (social conformity) का एक उदाहरण है, जहाँ लोग अपने व्यवहार को समूह के साथ संरेखित करते हैं, भले ही उनकी व्यक्तिगत राय अलग हो।
मीडिया की भूमिका
मीडिया भी इस प्रथा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। द हॉलीवुड रिपोर्टर, वैरायटी, और डेडलाइन जैसे प्रमुख प्रकाशन प्रत्येक फिल्म की तालियों की अवधि को मापते हैं और इसे सुर्खियों में लाते हैं। उदाहरण के लिए, नूवेल वाग के लिए वैरायटी ने 6.5 मिनट की तालियाँ दर्ज कीं, जबकि डेडलाइन ने 11 मिनट की। यह असमानता दर्शाती है कि तालियों की अवधि को मापने में कोई मानक नहीं है, और यह अक्सर अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है।
मीडिया की यह प्रवृत्ति तालियों को एक फिल्म की गुणवत्ता का मापदंड बनाती है, जो भ्रामक हो सकता है। जैसा कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया, तालियों की लंबाई को अक्सर एक प्रतियोगिता की तरह प्रस्तुत किया जाता है, जो सिनेमा की कला को एक खेल में बदल देता है।
आलोचनाएँ: तालियाँ या पतन का संकेत?
लंबी तालियों की प्रथा को कई आलोचकों ने एक खोखले अनुष्ठान के रूप में देखा है, जो सिनेमा की वास्तविक स्थिति को छिपाता है। यह प्रथा न केवल सिनेमा के मूल्यांकन को प्रभावित करती है, बल्कि यह एक गहरे संकट का भी संकेत देती है।
सिनेमा की प्रासंगिकता का संकट
कान्स में लंबी तालियाँ सिनेमा की घटती लोकप्रियता को छिपाने का एक प्रयास हो सकती हैं। जैसा कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने उल्लेख किया, एक स्वस्थ और जीवंत कला रूप को इतने अतिशयोक्तिपूर्ण समर्थन की आवश्यकता नहीं होती। सिनेमा, जो कभी सांस्कृतिक केंद्र में था, अब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मनोरंजन के दौर में अपनी प्रासंगिकता खो रहा है। इस संदर्भ में, लंबी तालियाँ एक तरह का सामूहिक आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास हो सकती हैं।
यह प्रथा अन्य कला रूपों में भी देखी जाती है। उदाहरण के लिए, थिएटर में हर प्रदर्शन के अंत में स्वचालित रूप से खड़े होकर तालियाँ बजाना, या ओपेरा में बार-बार एनकोर देना, यह दर्शाता है कि जब कोई कला रूप अपनी मुख्यधारा की प्रासंगिकता खो देता है, तो वह अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा के माध्यम से अपनी स्थिति को बनाए रखने की कोशिश करता है।
आलोचना का दमन
कान्स में एक और उल्लेखनीय बदलाव है नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का कम होना। पहले, दर्शक खराब फिल्मों को खुलकर आलोचना करते थे, जैसे कि 2003 में विन्सेंट गैलो की द ब्राउन बनी या 2006 में रिचर्ड केली की साउथलैंड टेल्स को हूटिंग का सामना करना पड़ा था। लेकिन हाल के वर्षों में, ऐसी आलोचनाएँ लगभग गायब हो गई हैं। यह आत्म-संयम (self-censorship) का एक रूप हो सकता है, जहाँ दर्शक सामाजिक दबाव के कारण अपनी नकारात्मक भावनाओं को व्यक्त करने से बचते हैं।
यह बदलाव सिनेमा की आलोचनात्मक संस्कृति के लिए हानिकारक हो सकता है। एक स्वस्थ कला रूप में, प्रशंसा और आलोचना दोनों का स्थान होता है। लेकिन जब केवल प्रशंसा को प्रोत्साहित किया जाता है, तो यह कला की वास्तविक गुणवत्ता पर सवाल उठाता है।
2025 के कान्स फेस्टिवल: प्रमुख घटनाएँ और तालियाँ
2025 का कान्स फेस्टिवल कई उल्लेखनीय फिल्मों और उनके लंबे स्टैंडिंग ओवेशन के लिए जाना जाएगा। यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण हैं:
सेंटिमेंटल वैल्यू: 19 मिनट की तालियाँ
जोआकिम ट्रायर की सेंटिमेंटल वैल्यू ने 2025 के कान्स में सबसे लंबी तालियाँ प्राप्त कीं। इस फिल्म को 19 मिनट की तालियाँ मिलीं, जो इसे फेस्टिवल के इतिहास में तीसरी सबसे लंबी अवधि बनाती है। फिल्म में एल फैनिंग और रेनेट रीन्सवे की मुख्य भूमिकाएँ थीं, और इसे Palme d’Or के लिए एक मजबूत दावेदार माना जा रहा है। दर्शकों की भावनात्मक प्रतिक्रिया और ट्रायर का उत्साहपूर्ण भाषण इस प्रीमियर को यादगार बनाता है।
होमबाउंड: भारतीय सिनेमा का गौरव
नीरज घायवान की होमबाउंड ने 'Un Certain Regard' खंड में 9 मिनट की तालियाँ प्राप्त कीं। यह फिल्म, जिसमें जाह्नवी कपूर, ईशान खट्टर, और विशाल जेठवा ने अभिनय किया, भारत की एकमात्र फीचर फिल्म थी जिसे 2025 के कान्स में प्रदर्शित किया गया। इसकी कहानी दोस्ती, महत्वाकांक्षा, और सामाजिक बाधाओं के इर्द-गिर्द घूमती है, और इसने दर्शकों को भावनात्मक रूप से प्रभावित किया।
नूवेल वाग: विवादास्पद तालियाँ
रिचर्ड लिंकलेटर की नूवेल वाग को 10-11 मिनट की तालियाँ मिलीं, लेकिन इसकी अवधि को लेकर मीडिया में मतभेद थे। वैरायटी ने 6.5 मिनट की तालियाँ दर्ज कीं, जबकि डेडलाइन ने 11 मिनट की। यह असमानता इस प्रथा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है।
क्या तालियाँ सिनेमा की गुणवत्ता को दर्शाती हैं?
कान्स की तालियों की प्रथा को अक्सर फिल्म की गुणवत्ता के मापदंड के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह धारणा भ्रामक हो सकती है। पैन'स लैब्रिंथ जैसी कुछ फिल्मों को मिली तालियाँ उनकी स्थायी प्रशंसा के साथ मेल खाती हैं, लेकिन कई बार तालियों की अवधि और फिल्म की गुणवत्ता के बीच कोई संबंध नहीं होता। उदाहरण के लिए, 2025 में जूलिया डुकर्न्यू की अल्फा को 12 मिनट की तालियाँ मिलीं, लेकिन इसे एक असंगत ड्रामा माना गया।
बॉन्ग जून हो ने 2019 में अपनी फिल्म पैरासाइट के लिए 8 मिनट की तालियाँ प्राप्त करने के बाद इसे जल्दी समाप्त करने की कोशिश की थी, यह कहते हुए कि वह और उनकी टीम भूखे थे। यह दर्शाता है कि तालियाँ हमेशा उत्साह का प्रतीक नहीं होतीं; यह एक सामाजिक अनुष्ठान हो सकता है जिसमें दर्शक बाध्य महसूस करते हैं।
निष्कर्ष: उत्सव या आत्म-धोखा?
कान्स फिल्म फेस्टिवल में लंबे समय तक खड़े होकर तालियाँ बजाने की प्रथा एक जटिल सामाजिक और सांस्कृतिक घटना है। यह एक ओर सिनेमा के प्रति उत्साह और सामूहिक उत्सव को दर्शाती है, लेकिन दूसरी ओर यह एक गहरे संकट का संकेत भी हो सकती है। सिनेमा की घटती प्रासंगिकता, आलोचना की कमी, और अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा की संस्कृति यह दर्शाती है कि यह प्रथा केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि एक तरह का आत्म-धोखा भी हो सकता है।
2025 का कान्स फेस्टिवल इस प्रथा का एक और अध्याय रहा, जिसमें सेंटिमेंटल वैल्यू, होमबाउंड, और नूवेल वाग जैसी फिल्मों ने लंबी तालियाँ प्राप्त कीं। लेकिन यह प्रथा सवाल उठाती है: क्या हम वास्तव में सिनेमा की जीवंतता का जश्न मना रहे हैं, या हम एक ऐसी कला को जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं जो अपनी प्रासंगिकता खो रही है? शायद समय आ गया है कि हम तालियों की बजाय चुप्पी और गहरे चिंतन को अपनाएँ, ताकि सिनेमा की वास्तविक स्थिति को समझ सकें।
0 Comments